Explore expert predictions and economic factors influencing gold price forecast for 2025.
आजकल हम सभी INVESTORS और TRADERS के MIND मे यह सवाल परेशान कर रहा है कि सोना और कितना ऊपर जएगा? क्या सोने की कीमतों मे यह तेजी TRAP तो नहीं है। क्या अब इतने ऊपर के LEVELS पर BUYING करना ठीक है, या ये PROFIT BOOKING का TIME है, या हम सभी, अभी भी FRESH BUYING कर सकते हैं ?
ऐसे बहुत सारे QUESTIONS हमे परेशान कर रहे हैं तो इस आर्टिकल मे Gold Price Forecast 2025 से RELATED 7 points को समझने की कोशिश करते हैं।
- Gold SPOT CHART
- Gold Price बढ़ने के कारण
- Experts (विशेषज्ञों) की राय
- इंडियन कंज्यूमर डिमांड पर असर
- 2025 का आउटलुक
- क्या होगा करेक्शन का लेवल?
- अब सोने में निवेश करें या इंतजार ?
GOLD SPOT CHART

इंडिया मे GOLD RATE – 93,353 per 10 grams 24K (999)
Gold के Price मे लगभग 25 % की बढ़ोत्तरी देखने को मिली है 2025 मे।
Gold Price बढ़ने के कारण
अमेरिका-चीन के बीच टैरिफ (व्यापार घाटा) का झगड़ा-
अमेरिका और चीन के बीच टैरिफ वॉर (tariff War ) जंग की तरह बन गयी है। अमेरिका ने चीन पर पहले ही 20 % टैक्स Fentanyl ड्रग्स पर लगाया था फिर व्यापार घाटे (trade deficit) को कम करने के लिए 125 % tax लगा दिया यह बढ़कर 145 % हो गया।

चीन ने भी इसका जबाब देते हुए अमेरिका से आने वाले प्रोडक्ट्स पर पहले 84 % टैक्स और फिर उसे बढ़ाकर 125 % कर दिया अब चीन अमेरिका पर दबाब बनाने के लिए दूसरे देशों से बात कर रहा है।
फेंटानिल (Fentanyl) ड्रग्स – यह एक पेनकिलर (painkiller) दवा है। यह मॉर्फीन से 50 से 100 गुना ज्यादा ताकतवर होती है। इसे ओपिऑइड (opioid) दवाओं की कैटेगरी में रखा गया है, जो तेज़ दर्द को कम करने के लिए दी जाती है जैसे कि कैंसर के मरीजों को। यह एक सिंथेटिक (कृत्रिम रूप से बनाई गई) दवा है।
दुनियाभर में मंदी का डर (Recession Fear)-
2025 में मंदी (Recession) का डर क्यों बढ़ रहा है? जानिए प्रमुख कारण
पहले समझिए Recession होता क्या है?
- नौकरियाँ कम हो जाती हैं।
- कंपनियाँ नुकसान में जाती हैं।
- कंपनियाँ निवेश करना रोक देती हैं।
- चीज़ें बिकती नहीं हैं।
- लोग खर्च करना बंद कर देते हैं।
- शेयर बाज़ार में गिरावट आती है।
- धीरे-धीरे पूरा सिस्टम सुस्त हो जाता है।
- GDP लगातार 2 तिमाही (quarters) तक गिरती है।

Recession का मतलब है देश की अर्थव्यवस्था में धीमापन या गिरावट आना। देश की आर्थिक सेहत खराब होने पर उसे Recession कहा जाता है। इसके प्रमुख कारण इस प्रकार हैं।
ज्यादा ब्याज दरें (High Interest Rates):
मान लीजिये हम और आप लोन लेने जा रहे हैं तो क्या HIGH INTEREST RATE पर हम लोन लेना पसंद करेंगे। सीधी सी बात है हम हाउस लोन , गाड़ी , मोबाइल , लेने का PLAN पोस्टफोने कर देंगे। जिससे मार्केट मे DEMAND कम हो जाएगी, कम्पनियो मे प्रोडक्शन कम हो जायगा।
जब लोन महंगा होता है, तो कंपनियाँ फैक्ट्री, मशीन, या नया स्टाफ नहीं लगातीं। नया रोज़गार नहीं आता, बिज़नेस की ग्रोथ रुक जाती है। शेयर बाज़ार में गिरावट आती है। हम और आप क्या सोचेंगे कि FD में 7.25 % मिल रहा है, क्यों रिस्क लें? इसलिए शेयर मार्केट में पैसा कम लगता है, कंपनियों के शेयर गिरते हैं ,माहौल डरावना लगने लगता है।
धीरे-धीरे पूरा सिस्टम सुस्त हो जाता है लोग खर्च नहीं कर रहे, कंपनियाँ निवेश नहीं कर रहीं, शेयर बाज़ार गिर रहा है,तो पूरी अर्थव्यवस्था की रफ्तार धीमी पड़ जाती है। और यही बन जाता है Recession का डर (Recession fears)।
ज्यादा ब्याज दरें महंगाई पर लगाम लगाती हैं लेकिन इसका साइड इफ़ेक्ट ये होता है कि महंगी ब्याज दरें अगर ज़्यादा समय तक बनी रहें, तो खर्च और निवेश दोनों रुक जाते हैं ,जिससे मंदी (Recession) का खतरा पैदा हो जाता है।
महंगाई अभी भी चिंता का विषय (Inflation अभी टली नहीं):
महंगाई को काबू करने के लिए ब्याज दरें तो बड़ाई जा रहीं हैं पर आज की तारीख़ मे भी देखें तो खाने-पीने की चीजें, पेट्रोल, गैस, कपड़े सबके दाम पहले से ज़्यादा हैं।
महंगाई जिस ratio मे बढ़ती है उस अनुपात मे वेतन नहीं बढ़ता। जिससे एक आम परिवार को रोज़मर्रा की ज़रूरतें पूरी करना भी मुश्किल हो गया है। महंगाई को रोकने के लिए बैंक, लोन महंगे कर रहे हैं, जिससे EMI और खर्च और बढ़ जाते हैं। मतलब कोई राहत दिखाई नहीं देती।
US-China Trade War फिर से बढ़ा:
दोनों देश एक दूसरे पर नए tariff (टैक्स ) लगा रहे हैं जिससे कारोबार पर असर बढ़ता जा रहा है
यूरोप में आर्थिक सुस्ती (Slowdown in Europe):
बड़े यूरोपीय देशों जैसे जर्मनी, फ्रांस की इकोनॉमी की रफ़्तार धीमी हो गयी है जिससे सिर्फ यूरोप ही नहीं, पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था पर असर पड़ रहा है।
तेल की कीमतें अस्थिर (Crude Oil Price Volatility):
मिडिल ईस्ट में संघर्ष और ओपेक देशों की सप्लाई मे कमी करने के कारण तेल की कीमते कभी ऊपर कभी नीचे होती रहती है।
मिडिल ईस्ट (Middle East) का मतलब है मध्य पूर्व, यानी वो इलाका जो एशिया और अफ्रीका के बीच आता है।
इसमें कुछ प्रमुख देश शामिल होते हैं जैसे:
सऊदी अरब (Saudi Arabia) | ईरान (Iran) |
इराक (Iraq) | संयुक्त अरब अमीरात (UAE) |
कुवैत (Kuwait) | कतर (Qatar) |
इज़राइल (Israel) | फिलिस्तीन (Palestine) |
सीरिया, लेबनान, ओमान, बहरीन |
ये इलाका क्यों खास है?
यहां दुनिया का सबसे ज़्यादा कच्चा तेल (Crude Oil) निकलता है। |
यहां अक्सर राजनीतिक और धार्मिक संघर्ष होते रहते हैं। |
यहां की खबरों का सीधा असर तेल के दाम और शेयर बाजार पर पड़ता है। |
टेक सेक्टर में छंटनी (Tech Layoffs):
बड़ी टेक कंपनियाँ जैसे Google, Amazon, आदि ने कर्मचारियों को कम करना शुरू कर दिया है जिससे जबसे AI और ऑटोमेशन आ गया है अब मशीनें इंसानों का काम कर रही हैं। टेक कंपनियों के प्रॉफिट घट रहे हैं। Pandemic के बाद Hiring ज़्यादा हो गई थी, इसे भी बैलेंस करने की कोशिश की जा रही है।
बाजार में अनिश्चितता (Stock Market Volatility):
शेयर बाजार मे बहुत अधिक Volatility देखने को मिल रही है जिससे सबका मार्केट पर से विश्वास उठता जा रहा है। लोग शेयर मार्केट मे पैसा लगाने की जगह Fixed Deposit के interest को सही समझ रहे हैं।
जियोपॉलिटिकल टेंशन (जैसे यूक्रेन युद्ध, ताइवान मुद्दा):
यूक्रेन-रूस युद्ध: 2022 से अभी तक रूस और यूक्रेन का युद्ध पूरी तरह समाप्त नहीं हुआ है जिससे तेल, गैस और अनाज की सप्लाई पर असर पड़ा है। यूरोप मे महंगाई बढ़ने का कारण रूस से गैस मिलनी कम हो गई, जिससे अर्थव्यवस्था पर असर पड़ा है।
चीन, ताइवान को अपना हिस्सा मानता है और उसे कब्जे में लेने की कोशिशें कर रहा है। अमेरिका ताइवान का समर्थन करता है, जिससे चीन-अमेरिका में तनाव बढ़ गया है। इस तनाव की वजह से टेक इंडस्ट्री पर असर पड़ा है क्योंकि ताइवान में दुनिया की सबसे बड़ी चिप बनाने वाली कंपनियाँ हैं।
ईरान और इसराइल, साथ ही अरब देशों में भी तनातनी बनी हुई है। इसका असर कच्चे तेल की कीमतों पर पड़ता है, जिससे दुनिया भर में महंगाई बढ़ती है।
अमेरिका के बॉन्ड और डेब्ट की चिंता–
अमेरिका का $36 ट्रिलियन कर्ज मतलब क्या?
अमेरिका ने अब तक करीब 36 ट्रिलियन डॉलर (36 लाख करोड़ डॉलर) का कर्ज ले रखा है। कोई भी देश कर्ज कैसे लेता है और कैसे धीरे – धीरे यह बढ़ता चला जाता है। जैसे हम और आप भी अपनी आवश्कताओं के लिए कर्ज लेते हैं ऐसे ही कोई भी देश दूसरे देश से कर्ज लेता है और सरकारी बांड्स बेच कर उस पर ब्याज भी चुकता है।

सरकार को मिलिट्री खर्च चलाना है, हेल्थ और सोशल सिक्योरिटी देनी है, ब्याज भी चुकाना है इस लिए सरकार को ना चाहते हुए भी कर्ज लेना पड़ता है लेकिन इससे सरकार के ऊपर बोझ भी बढ़ जाता है। जैसे
ब्याज चुकाने का बोझ ,सरकारी खर्च में कटौती, नया कर्ज लेना और मुश्किल, डॉलर की साख पर असर, आर्थिक मंदी का खतरा।
अगरइसे कंट्रोल नहीं किया गया तो ?- एक दिन ऐसा वक्त आ जायगा जब अमेरिका को कर्ज चुकाना मुश्किल हो जाए, डॉलर कमजोर हो जाए, वैश्विक आर्थिक संकट पैदा हो।
अमेरिका कैसे हालत को काबू करेगा ?- टैक्स बढ़ाना या नई पॉलिसी लाना, ब्याज दरों को कंट्रोल में रखना, सरकारी खर्च को बेहतर तरीके से मैनेज करना, आर्थिक विकास (GDP) को तेज़ करना
ग्लोबल इलेक्शन और पॉलिटिकल रिस्क-
ग्लोबल इलेक्शन मतलब जैसे – अमेरिका, भारत, यूके, रूस आदि दुनिया के अलग-अलग देशों में होने वाले चुनाव। नई सरकारें नई नीति, कानून, टैक्स या विदेश नीति लेकर आती हैं जिससे बदलाव की संभावना होती है इस बदलाव के रिस्क को पॉलिटिकल रिस्क कहते हैं।

जिससे निवेशक और बाजार दोनों थोड़ा डरे होते हैं, कि आने वाले सालों में नीति कैसी होगी – बिजनेस फ्रेंडली या नहीं? क्योंकि इससे आर्थिक ग्रोथ पर असर पड़ता है और बाज़ार में उतार-चढ़ाव आता है।, विदेशी कंपनियाँ नई इन्वेस्टमेंट टाल देती हैं।, निवेशक डर जाते हैं, पैसा शेयर बाजार से निकाल लेते हैं।
क्या -क्या रिस्क हैं –
नयी सरकार आने पर कई बार पुरानी नीतियां बदल सकती है।
कुछ देश व्यापार और निवेश के नियम सख्त कर देते हैं।
कहीं संविधान या कानून में बदलाव हो जाता है।
कभी-कभी सरकार विरोधी प्रदर्शन या अस्थिरता भी आ जाती है। जो हमे अक्सर देखने को मिलती हैं।
डॉलर की कमजोरी-
डॉलर मे कमजोरी आने पर भी INVESTOR डॉलर छोड़कर गोल्ड मे INVEST करना शुरू कर देते हैं।

डॉलर कमजोर = सोने की कीमत बढ़ने की संभावना क्योंकि लोग सोचते हैं कि सोना ज़्यादा सुरक्षित है।इसलिए जैसे ही डॉलर गिरता है,गोल्ड की डिमांड बढ़ती है और उसकी कीमत ऊपर जाने लगती है।
बड़ी-बड़ी रिपोर्ट्स और अनुमान–
बहुत सारे एक्सपर्ट्स देश और विदेश के और कई अंतरराष्ट्रीय रिपोर्ट्स और रिसर्च न्यूज़ चैनेल्स बता रहे हैं कि आने वाले समय में सोने की कीमत $3500 से लेकर $8000 तक जा सकती है।

ऐसी न्यूज़ सुनकर हम थोड़ा-थोड़ा SIP या bulk मे भी GOLD की BUYING करने लगते हैं ये सोचकर कि आगे चलकर कीमत और बढ़ेगी, ताकि बाद में मुनाफा कमा सकें। इससे डिमांड और बढ़ जाती है,और दाम और ऊपर जाने लगते हैं।
मांग और सप्लाई में बदलाव –
आप इसको इस तरह समझिए कि जैसे अगर प्याज की मांग बहुत ज़्यादा हो जाए और बाजार में प्याज कम मिले, तो कीमत बढ़ जाती है – वैसे ही सोने के साथ होता है।

शादी का सीजन, त्योहार और अक्षय तृतीया जैसे खास मौकों पर सोने की मांग तेजी से बढ़ जाती है। लोग धार्मिक, पारंपरिक और निजी कारणों से गोल्ड खरीदना पसंद करते हैं। लेकिन अगर उस समय सोने की सप्लाई कम हो,तो कीमतें अपने आप बढ़ने लगती हैं।
Experts (विशेषज्ञों) की राय
What Experts Say About Gold Price Forecast 2025
International Experts:
Citigroup: गोल्ड जुलाई तक $3500 तक जा सकता है।
Swiss Asia Capital: गोल्ड का लॉन्ग टर्म टारगेट $8000 है (3-4 साल में)।
Pace 360 (Amit Goyal): गोल्ड $2600 से $3200 तक जा सकता है।
भारतीय विशेषज्ञों की राय:
Metal Focus- लॉन्ग टर्म में गोल्ड $3300–$3400 तक जा सकता है।
लेकिन इस समय निवेश जोखिम भरा हो सकता है, क्योंकि रिटर्न की तुलना में रिस्क ज़्यादा है।
मिडल क्लास अब गोल्ड से दूर हो रहा है – 10 ग्राम सोना खरीदने के लिए पूरे साल की सेविंग्स लग जाती है।
अभी गोल्ड की तेजी “फियर प्रीमियम” के कारण है।
US और China के बीच बातचीत शुरू हुई तो गोल्ड तुरंत गिर सकता है।
लॉन्ग टर्म पोजीशन लेने का ये सही समय नहीं है, मुनाफा बुक करना चाहिए।
डिमांड धीरे-धीरे कम हो रही है, खासकर मिडल क्लास की।
कुछ लोग वेट कर रहे हैं कि प्राइस नीचे आए तो खरीदें।
इंडियन कंज्यूमर डिमांड पर असर
₹1 लाख के करीब सोने की कीमत से मिडिल क्लास की डिमांड पर असर पड़ा है। अब ₹1 लाख पर सोना आते आते लोगो ने खरीदारी लगभग कम या बंद कर दी है।
सभी सोने के करेक्शन की उम्मीद कर रहे हैं। Gold ETFs और Digital Gold जैसे विकल्पों का रुझान बढ़ा है। SIP के ज़रिए लोग थोड़ा-थोड़ा करके निवेश करना पसंद कर रहे हैं। त्योहारों के दौरान भाव चाहे जैसे हों, परंपरा के चलते थोड़ी बहुत खरीद बनी रहती है।
2025 का आउटलुक
गोल्ड की कीमतें $3,500 या ₹1,10,000 तक जा सकती हैं। लेकिन रास्ता आसान नहीं होगा करेक्शन और वॉलेटिलिटी देखी जा सकती है। यूएस-चाइना बातचीत क्या होती है इसे भी देखना पड़ेगा।
According to the gold price forecast 2025, many global factors such as inflation, recession fears, and central bank buying could drive prices up.
क्या होगा करेक्शन का लेवल?
गोल्ड में मुनाफा वसूली की स्थिति बनी तो $2,850 – $2,900 तक गिरावट संभव है। ये लेवल लॉन्ग टर्म निवेश के लिए अच्छे माने जा सकते हैं।
अब सोने में निवेश करें या इंतजार ?
गोल्ड ज्वेलरी बायर्स- अक्षय तृतीया से पहले अगर दाम घटे, तभी खरीदें।
लॉन्ग टर्म निवेशक- वेट एंड वॉच, ₹95,000 या $2,850 पर दोबारा सोचें।
शॉर्ट टर्म ट्रेडर- मुनाफा बुक करें, तेजी का फायदा उठाएं।
Bulk buying इस समय risky हो सकती है अगर correction आ गया तो।
सोने में अभी भी दम है, लेकिन सावधानी से छोटा छोटा निवेश। अगर आप ट्रेडर हैं तो तेज़ी में मुनाफा बुक करें, और निवेशक हैं तो सही लेवल का इंतजार करें।
Gold Price Forecast 2025-Final Conclusion:
Yes, Gold में निवेश किया जा सकता है लेकिन…
- SIP (छोटे-छोटे हिस्सों में निवेश) ज्यादा बेहतर रहेगा, ताकि अगर correction आए तो भी नुकसान कम हो।
- लंबी अवधि के निवेशक (Long-term investors) के लिए ये एक अच्छा मौका है।
- अगर आप एक बार में बहुत बड़ी रकम निवेश करना चाह रहे हैं तो अभी थोड़ा इंतज़ार करें — और correction का मौका देखकर एंट्री लें।
क्या Gold के दाम का असर Indian Consumers पर भी पड़ेगा?
बिलकुल! Gold Import महंगा होने से भारत में ज्वेलरी और शादी-ब्याह में सोना खरीदना महंगा पड़ेगा। साथ ही रुपये की गिरावट भी कीमत और बढ़ा सकती है।
क्या अभी सोने में निवेश करना चाहिए या रुकना चाहिए?
अगर आप लंबी अवधि (2-3 साल) के लिए सोच रहे हैं, तो SIP या छोटे पार्ट्स में निवेश करना बेहतर है। अगर Correction आता है, तो वह Buying Opportunity हो सकती है।
लेकिन एकसाथ भारी निवेश से बचें।
क्या Gold की कीमत वाकई $3500–$8000 तक जा सकती है?
हाँ, कई इंटरनेशनल रिपोर्ट्स (जैसे Bloomberg, WGC, Goldman Sachs) ने अनुमान लगाया है कि ग्लोबल अनिश्चितता, सेंट्रल बैंकों की खरीद और डॉलर की कमजोरी के चलते सोना अगले कुछ वर्षों में $3500 से $8000 तक पहुँच सकता है।
अभी Gold में इतनी तेजी क्यों है?
अमेरिका का $36 ट्रिलियन से भी ज्यादा कर्ज
Recession का डर और ब्याज दरों में संभावित कटौती
केंद्रीय बैंकों (खासतौर पर चीन) की बड़ी खरीदारी
डॉलर की वैल्यू में गिरावट
इन सब कारणों से सोना Safe Haven बना हुआ है, और इसकी डिमांड बढ़ रही है।
Nifty 50 Share Price Target 2025 |Crash or Recovery?
Crude Oil Share Price Target 2025| Analysis & Outlook
NSE Website update 2025: जानें Best फीचर्स और बदलाव
Intraday to Delivery: Avoid This Big Mistake!
ETFs Share Price Target 2025 – Buy Low, Sell High Strategy
Why Are ETFs Best for Swing Trading?
Are ETFs like mutual funds? free education 2025
ETF से Risk-Free कमाई के Best Secrets
NSE की Website के लिए इस लिंक पर click करें।
Disclaimer
यह लेख केवल जानकारी और शैक्षणिक उद्देश्यों के लिए है। इसमें दी गई जानकारी किसी प्रकार की निवेश सलाह (Investment Advice) नहीं है। निवेश करने से पहले अपने वित्तीय सलाहकार (Financial Advisor) से सलाह ज़रूर लें। बाजार में उतार-चढ़ाव सामान्य है, और किसी भी तरह का निवेश जोखिम (Risk) के अधीन होता है।
Contents
- 1 GOLD SPOT CHART
- 2 Gold Price बढ़ने के कारण
- 2.1 अमेरिका-चीन के बीच टैरिफ (व्यापार घाटा) का झगड़ा-
- 2.2 दुनियाभर में मंदी का डर (Recession Fear)-
- 2.2.1 ज्यादा ब्याज दरें (High Interest Rates):
- 2.2.2 महंगाई अभी भी चिंता का विषय (Inflation अभी टली नहीं):
- 2.2.3 US-China Trade War फिर से बढ़ा:
- 2.2.4 यूरोप में आर्थिक सुस्ती (Slowdown in Europe):
- 2.2.5 तेल की कीमतें अस्थिर (Crude Oil Price Volatility):
- 2.2.6 टेक सेक्टर में छंटनी (Tech Layoffs):
- 2.2.7 बाजार में अनिश्चितता (Stock Market Volatility):
- 2.2.8 जियोपॉलिटिकल टेंशन (जैसे यूक्रेन युद्ध, ताइवान मुद्दा):
- 2.3 अमेरिका के बॉन्ड और डेब्ट की चिंता–
- 2.4 ग्लोबल इलेक्शन और पॉलिटिकल रिस्क-
- 2.5 डॉलर की कमजोरी-
- 2.6 बड़ी-बड़ी रिपोर्ट्स और अनुमान–
- 2.7 मांग और सप्लाई में बदलाव –
- 3 Experts (विशेषज्ञों) की राय
- 4 इंडियन कंज्यूमर डिमांड पर असर
- 5 2025 का आउटलुक
- 6 क्या होगा करेक्शन का लेवल?
- 7 अब सोने में निवेश करें या इंतजार ?